निकल पड़ा हूँ लेखन यात्रा में , लिए शब्दों का पिटारा ! भावनाओ की स्याही हैं , कलम ही मेरा सहारा !!
सैलरी तुम चाँद जैसी हो ,
पूर्णिमा पर आती हो ,
अमावस पर ख़त्म हो जाती हो ,
मगर अमावस से फिर ,
पूर्णिमा आने तक ,
वो इन्तजार हद तक गुजर जाता है,
साँसे अटकी , जेब खाली ,
शरीर हलकान रहता है।
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