Monday, December 9, 2019

यह दौर क्यों इतना संवेदनहीन कैसे ?

बीच में सड़क पर अधमरा औंधे मुहँ गिरा , 
बचते बचाते निकलते अपनी कारो से , बाइको से , 
नजर सी बचाकर देखकर , 
एक्सेलरेटर पर पाँव दबाते , 
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे  ?

बस स्टॉप पर दस लोग खड़े , 
एक लड़की को छेड़ रहे दो लड़के , 
बालो से घसीट कर , 
अपनी कार में धकेलते , 
लोग यूँ ही खड़े रहे जैसे गूँगे और अंधे ,
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे  ?

उन बूढ़े माँ बाप ने ज़िन्दगी खपा दी , 
जिस छत के लिए , 
अपना पेट काटकर , 
हर ख़ुशी दी अपने जिगर के टुकड़े को , 
एक दिन क्यों शर्म आती है उसको , 
अपने साथ रखने को ,
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे  ?

उसके पास जज्बा था , 
समाज के लिए कुछ करना का , 
साथ किसी ने दिया नहीं - पागल कहते रहे , 
वो सफेदपोश जिसने कभी कुछ किया ही नहीं , 
वोट मांगने के अलावा , 
उसी के पीछे सब चलते रहे भेड़ो की तरह , 
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे  ?

आग लगती है पड़ोस में , 
लगने दो , क्या फर्क पड़ता है हमको , 
फैली जब आग , जद्द में आया अपना घर तो , 
दुसरो की मदद की आस फिर कैसे ,
ये दौर इतना सवेंदनहीन कैसे  ?

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