Friday, January 29, 2021

यादें

 


अकेला बैठा हूँ लेकिन अकेला नहीं हूँ ,

इक यादों की गठरी है , गाँठ खोल रहा हूँ।

 

परत दर परत संजो कर रखी है यादें ,

उनको झाड़कर फिर करीने से रख रहा हूँ। 

 

इक परत में बचपन झाँक रहा है ,

इक परत में माँ बाबूजी का दुलार छलक रहा है। 

 

वो पहले गुरु जी रौबीले से दिख रहे है इक परत में ,

विद्यालय का वो आँगन चहक  रहा है। 

 

कुछ बचपन के दोस्त कंधे में हाथ रखकर अब भी खड़े है ,

मैं ही शायद उन्हें छोड़ गया वो तो अब भी वही अड़े है। 

 

वो मेरे पुरखो का बनाया घर का आँगन बिलकुल नहीं बदला है ,

मेरे पास ही उसकी सुध लेने का अब समय नहीं है। 

 

विद्यालय की वह प्रार्थना अब भी कानो में गूंजती है,

कैसे भूल गया मैं , शायद मुझमे ही कोई कमी है। 

 

वो सपने दबे पड़े है इक परत में , कितनी धूल जम गयी है ,

झाड़ा जरा तो मेरी ही हँसी छूट रही है। 

 

इक परत में अब भी जज्बात बंद पड़े है ,

रिस रहा है जैसे अंदर कुछ पिघल रहा है। 

 

समय की गति का भी क्या चक्कर है ,

भागते रहे उम्र भर , परिणाम वही सिफर है। 

 

हासिल है तो ये कुछ यादें ही है , तह करके रखता हूँ फिर से ,

कुछ की तुरपाई कर आगे बढ़ना ही है, यही तो जीवन सफर है।   

 

अकेला नहीं हूँ मैं कभी भी इस राह में , न जाने कितनी दुआओ का असर है,

न कोई गिला , न सिकवा किसी से , जो मिला , वो क्या कम है। 

 

अभी सफर लम्बा तय करना है , न जाने कितनी और परतें जुड़ेगी ,

जरुरी है समय निकालूँ और टटोलू - यही यादें तो असली पूँजी है। 

 

1 comment:

  1. Dadi ye jivan hai,yaado key Bina Kuch Nahi. Bas yaadein acchi honi Chahiye.

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