Wednesday, November 24, 2021

बेतरतीब ज़िन्दगी

 बड़ी बेतरतीब है ज़िन्दगी न जाने कितने पैबंद है।  

उम्मीद के धागों से न जाने कितने रफ़ू करने है।। 


दिल के दरख्त स्याह हो चले है अब।  

रोशनी का इन्तजार न जाने कब से है।।


यूँ तो कट ही जाएगी ये उम्र तमाम " आनन्द " । 

कुछ नायाब पलों के इन्तजार में ज़िन्दगी कब से है।।


कसूर ज़िंदगी का नहीं है इसमें ,रोज़ जगाती रही।  

एक दौड़ में हमारी सनक हमें बस भगाती  रही ।।


पता है कुछ नहीं मिलने वाला है उस पार जाकर भी। 

जी लेता कुछ पल जी भर कर यही भूल सताती रही।।




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