Saturday, August 31, 2024

क्या लिखूँ ?

 

 

शब्दों में "बेचैनी" है ,

भावनाओं में "उबाल",

कागज़ "मलिन " हो गया ,

कलम कहाँ करे "गुहार " ।

 

अनर्गल "प्रलाप " चहुँओर है ,

वर्चुअल दुनियाँ में भयंकर "शोर" है ,

सब्र , संयम अब "बीती" बात है ,

"विरोध" का ही जोर है। 

 

अहं का "वहम " जारी है ,

"गुरु " पर गूगल भारी है ,

"भूख" रोटी तक सीमित नहीं अब ,

इतनी "भागदौड़" -जेब खाली है। 

 

"शॉर्टकट" सब ढूँढ रहे ,

मेहनत में "मगज़मारी" है ,

"दिखावटी" बाज़ार अटा पड़ा है ,

"शोशेबाज़ी"- हर जगह जारी है। 

 

हुक्मरान "स्वार्थी" हो चुके ,

जनता -जनार्दन के हाल "बेहाल",

"विश्वास" तीतर हो चुका है ,

लिखे कलम क्या - "ए आई" नया बवाल। 

 


Tuesday, August 27, 2024

समय के बीज

 


 

समय के धरातल पर ,

जो बीज बोये जाते है ,

भविष्य में फिर वही ,

पेड़ बनकर समय की ,

छाती में उग आते है ,

बीज क्या बोया गया था ,

इसी बात पर पेड़ निर्भर है ,

फलदार होगा या कँटीला ,

ये बीज पर निर्भर है ,

समय अपने पास किसी का ,

कुछ बकाया नहीं रखता ,

वो देर -सवेर सब वापस कर देता है ,

वापस किसको ,कब करना है ,

ये समय का अपना निर्णय होता है ,

बीज को पनपने और पेड़ बनने में ,

समय भी तो अपना समय देता है,

और इस नाते इतना हक़ तो ,

समय का भी बनता है।

Monday, August 5, 2024

शांति

 


 इंसान बमुश्किल शांति से रह सकता है ,

उसे शांति हजम नहीं होती ,

वो खुद को उलझा के रखना चाहता है ,

कभी युद्ध में , कभी विवादों में ,

कभी बेफिजूल बातों में ,

फिर भी वह शांति से जीना चाहता है ,

अपने स्वभाव के विपरीत ,

मगर जानते है कुछ लोग ,

उसके अंदर का यह सच ,

वो उठाते है इसका फायदा ,

अपने स्वार्थो के लिए ,

उलझाकर रखना चाहते है सबको ,

ताकि वो साबित कर सके खुद को ,

सबसे बड़ा हितैषी इंसानो का ,

और भोग सके वो तमाम सुख ,

जो पैदा हुए है शांति की राख पर।