शब्दों में "बेचैनी" है ,
भावनाओं में "उबाल",
कागज़ "मलिन
" हो गया ,
कलम कहाँ करे "गुहार
" ।
अनर्गल "प्रलाप
" चहुँओर है ,
वर्चुअल दुनियाँ में
भयंकर "शोर" है ,
सब्र , संयम अब
"बीती" बात है ,
"विरोध" का
ही जोर है।
अहं का "वहम
" जारी है ,
"गुरु " पर
गूगल भारी है ,
"भूख" रोटी
तक सीमित नहीं अब ,
इतनी "भागदौड़"
-जेब खाली है।
"शॉर्टकट"
सब ढूँढ रहे ,
मेहनत में "मगज़मारी"
है ,
"दिखावटी"
बाज़ार अटा पड़ा है ,
"शोशेबाज़ी"-
हर जगह जारी है।
हुक्मरान "स्वार्थी"
हो चुके ,
जनता -जनार्दन के हाल
"बेहाल",
"विश्वास"
तीतर हो चुका है ,
लिखे कलम क्या -
"ए आई" नया बवाल।