हम , अधिकतर ,
अपनी क्षमताओं को कमतर आँकते है ,
और जो , अपनी क्षमताओं से ऊपर बढ़कर ,
कार्य कर जाते है ,
वही इतिहास बना जाते है,
दुर्भाग्य से , अधिकतर ,
किसी भी कारणवश ,
अपनी क्षमताओं का प्रयोग ,
किये बिना ही ,
समस्त जीवन गुजार देते है।
निकल पड़ा हूँ लेखन यात्रा में , लिए शब्दों का पिटारा ! भावनाओ की स्याही हैं , कलम ही मेरा सहारा !!
हम , अधिकतर ,
अपनी क्षमताओं को कमतर आँकते है ,
और जो , अपनी क्षमताओं से ऊपर बढ़कर ,
कार्य कर जाते है ,
वही इतिहास बना जाते है,
दुर्भाग्य से , अधिकतर ,
किसी भी कारणवश ,
अपनी क्षमताओं का प्रयोग ,
किये बिना ही ,
समस्त जीवन गुजार देते है।
बहुत बहस होती है ,
पुराना ज़माना अच्छा था ,
या नया जमाना अच्छा है ,
जो है , वो सामने है ,
जो सामने है ,
उसमे हम सबका ,
बराबर का योगदान है ,
अगर योगदान है ,
तो चाहे अच्छा है ,
या बुरा ,
हम सब इसके भागीदार है ,
और भागीदारी में ,
जो मिलेगा ,
उसे स्वीकार करना ,
जिम्मेदारी है ,
जिम्मेदारी से ,
अब हर कोई बचना चाहता है ,
बस मुँह फाड़ कह देना है ,
वो जमाना अच्छा था ,
और ये जमाना बुरा है,
जो अब सामने है ,
जैसा है , वही अच्छा है,
जम सकते है तो जमाओ ,
नहीं तो चुपचाप ,
नदी के गंगलोड़ की तरह ,
किनारे लगो ,
और पानी को सपाट ,
बहने दो,
जो बदलेगा , टिकेगा ,
परिवर्तन नियम है संसार का ,
समझदारी यही , तकाजा यही ,
इसके साथ जल्दी हो लो,
गंगलोड़ बनने से कोई ,
फायदा नहीं।
गंगलोड़ : नदी के द्वारा किनारा किया गया पत्थर
धीरे -धीरे हमारे चारों तरफ ,
इक मकड़जाल आकार ले रहा है ,
शनैः शनैः हम फँसते जा रहे है ,
और हमें मज़ा आ रहा है।
धीरे -धीरे पकड़ मजबूत हो रही है ,
जाल और कसा जा रहा है ,
आभाषी दुनिया का इक आवरण ,
जाल के ऊपर फैलाया जा रहा है।
छदम वातावरण असल पर हावी है ,
नये आख्यानों से जाल बुना जा रहा है ,
पँख उलझने लगे है महीन तारो से अब ,
आभासी क़ैदख़ाना तैयार हो रहा है।