Friday, September 13, 2019

अमावस की रात और कुछ जुगनू




वो अमावस की रात ,
जितना कालिख अपने में समेट सकती थी ,
समेटे , कितनी काली थी। 

दूर कृत्रिम  रोशनी  के जलते चिराग भी ,
जैसे अपनी रौशनी को अपने तक ही ,
समेटे , जुगनू से भी फीके थे। 

चाँद को भी जैसे आगोश में लेकर ,
तारो की चमक भी सोखकर ,
वो रात , सचमुच , भयानक अमावस की रात थी। 

मगर कुछ जुगनू अपनी ज़िद्द पर अड़े थे ,
मंडरा कर इधर उधर , बिना डर के ,
वो इस भयानक " अमावस " रात को चिड़ा रहे थे। 


बड़े जिद्दी और जुनूनी ये जुगनू ,
अपने अस्तित्व को दाँव पर लगाकर  ,
पहली किरण आने तक डटे रहने पर अड़े थे।  

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