Saturday, June 28, 2025

घर

 


जिसके किसी भी कोने में सुकून आ जाये ,

जिसके दीवारों से अपने बचपन की खुशबू आये ,

जिसके आँगन में अभी भी बचपन अटका हो ,

जिसके जर्रे जर्रे पर माता -पिता का अक्स नजर आये ,

जिसके हर कमरे की एक कहानी हो ,

जिसके दरख्तों पर छुपी कोई निशानी हो ,

जिसकी अलमारियों में बंद कई यादें हो ,

जिसकी दहलीज पर माँ का मन बसता हो ,

जिसकी फुलवारियों पर पिता की छाया हो ,

जिसकी नींव पर पूर्वजों का आशीर्वाद हो ,

वो " घर " होता है , बाकी तो  मकान होते है। 

Thursday, June 26, 2025

शाबाशी

 

दे सकते हो तो उम्मीद दो ,

बाँट सकते हो तो दर्द बाँटो ,

उलझे है सब यहाँ " आनंद "

बुरा तो दुश्मन का भी न सोचो। 

 

चिंताओं में वक्त मत गँवाओ ,

वो देख लेगा - दिल को समझाओ ,

हाथ में जो वर्तमान है "आनन्द ",

जैसा भी है , स्वीकारो और जियो। 

 

कौन क्या सोचता है ,

ये उसकी तकलीफ है ,

वक्त वैसे भी फिसला जा रहा ,

फालतू चीजों पर वक्त न जाया करो। 

 

खुशियाँ ढूँढने से नहीं मिलती ,

बड़ी कामयाबियाँ रोज़ नहीं होती ,

संघर्ष तो सभी की ज़िन्दगी में है ,

खुद को भी शाबाशी देना सीखो। 

Friday, June 13, 2025

इन्तजार

तुम मिलोगे दुबारा ? 

मैं नहीं जानता , 

मगर उम्मीद है , 

ज़िन्दगी के किसी न किसी , 

मोड़ पर , 

हम फिर टकरायेंगे , 

वो बात अलग होगी , 

तुम भी न जाने कितना सफर,

तय कर आये होगे, 

और मैं भी , 

मगर विश्वास तब तक , 

कायम रहेगा फिर मिलने का , 

जब तक ये दुनिया गोल रहेगी।  

जीवन

 

जीवन कौन चला रहा है ? 

क्या हम ?

कतई नहीं , 

हमें तो पता भी नहीं , 

अगले पल क्या होने वाला है ? 


फिर किसके हाथ में डोर है ? 

प्रकृति की , 

नहीं , 

इसको भी कोई और नियंत्रित कर रहा है , 


फिर किसके हाथों की कठपुतली है हम ? 

कौन हमें नचा रहा है ? 

किसकी मर्ज़ी से साँसे चल रही है ?

किसकी ईच्छा से ये संसार चल रहा है ? 


सबके अपने -अपने नाम है , 

सबका अपना -अपना विश्वास है , 

कोई तो है कहीं न कही , 

जो अदृश्य होकर भी कण -कण में बसा हैं।   

Sunday, June 8, 2025

शनैः शनैः

 शनैः शनैः , 

हम धैर्य खो रहे है , 

हम संयम खो रहे है , 

हम विश्वास खो रहे है , 

हम आस खो हो रहे है।  


शनैः शनैः , 

हम ईश्वर को भूल रहे है , 

हम रिश्ते भूल रहे है , 

हम मानवता भूल रहे है , 

हम करुणा , दया भूल रहे है।  


सच ये भी है  , 

धरती पर मानव सभ्यता , 

इन्ही गुणों से शताब्दियों तक , 

बची रही है।  

Thursday, June 5, 2025

पहाड़

आधे  से अधिक पहाड़ , 

पहले ही मैदानों में पहुँच चुका है , 

जो आधा बचा था गाँवों में , 

उसमे भी तीन चौथाई अब , 

सड़क किनारे बस चुका है , 

बचा एक चौथाई त्रस्त है , 

बन्दर , लंगूरो , सूअरों के आतंक से , 

गाँव के जीर्ण घरो के आँगन में , 

सिसूण जम चुका है , 

और जंगलों में चीड़ सिर उठा रहा है , 

जंगलो के रास्ते गुम हो चुके है , 

इन सबमे जंगल में , 

फिर से आ चुके है बाघ, 

गाँव अब गाँव नहीं रह गए , 

सड़क दूर गाँव अब सब , 

फिर से जंगल होने के कगार पर है।