Saturday, October 5, 2024

असमंजस्य

 

असमंजस्य चहुँओर है ,

क्या गलत ,क्या सही - सब झोल है ,

उसकी सुनु ,  किसकी सुनु ,

श्रोता बेचारा बेहोश है ,

प्रलापों का शोर भयंकर ,

मति पर बहुत जोर है ,

अहम पर वहम भारी ,

मन व्यग्र और बैचैन है ,

देख कर दुनिया की हालत ,

मन कहता है - मौन ठीक है ,

दिमाग हर बार फिरकी लेता है ,

झमेले में फँसने की पुरानी आदत है ,

उठापटक के इस दौर में ,

पता नहीं - कौन दारा , कौन किंगकॉन्ग है ,

मध्यम मार्ग में खतरा बहुत है ,

अकेले रह जाने का डर है ,

मत उलझा करो सड़क पर ,

न जाने कौन क्या तुर्रम खान है ,

चलानी है तो खुद पर चलाओ ,

अब सुनने को कौन तैयार है ,

नया जमाना है ,नए मर्ज़ है,

सोशल मीडिया -नया मंच तैयार है ,

ज्ञान खोजने की जरुरत क्या है ,

गूगल बाबा तैयार है,

मत पेला करो जबरदस्ती का ज्ञान ,

यहाँ सब अब होशियार है। 

 

Saturday, September 21, 2024

तकनीक

 

जकड़ रही तकनीक हमें ,

दिमाग कुंद कर रही ,

मकड़जाल फ़ैल रहा ऐसा ,

हर इंसान अदृश्य कैद में जी रहा। 

 

बेशक तकनीक जीवन आसान कर रही ,

स्थापित मानव मूल्यों से समझौता कर रही ,

संवेदनायें धीरे धीरे ख़त्म कर रही ,

आभासी दुनिया,असल दुनिया को कुतर रही। 

 

शिकायत तकनीक से नहीं है ,

तकनीक पर निर्भरता से है ,

आदी बना रही शनैः -शनैः ,

वरदान से अभिशाप न बने शनैः -शनैः। 

 

इंटरनेट ने जोड़ दिया सब ,

इंटरनेट ही तोड़ रहा सब ,

नीयत का सब खेल तकनीक ,

इस युग में देव- दानव बनायेगी तकनीक। 

 

Saturday, August 31, 2024

क्या लिखूँ ?

 

 

शब्दों में "बेचैनी" है ,

भावनाओं में "उबाल",

कागज़ "मलिन " हो गया ,

कलम कहाँ करे "गुहार " ।

 

अनर्गल "प्रलाप " चहुँओर है ,

वर्चुअल दुनियाँ में भयंकर "शोर" है ,

सब्र , संयम अब "बीती" बात है ,

"विरोध" का ही जोर है। 

 

अहं का "वहम " जारी है ,

"गुरु " पर गूगल भारी है ,

"भूख" रोटी तक सीमित नहीं अब ,

इतनी "भागदौड़" -जेब खाली है। 

 

"शॉर्टकट" सब ढूँढ रहे ,

मेहनत में "मगज़मारी" है ,

"दिखावटी" बाज़ार अटा पड़ा है ,

"शोशेबाज़ी"- हर जगह जारी है। 

 

हुक्मरान "स्वार्थी" हो चुके ,

जनता -जनार्दन के हाल "बेहाल",

"विश्वास" तीतर हो चुका है ,

लिखे कलम क्या - "ए आई" नया बवाल। 

 


Tuesday, August 27, 2024

समय के बीज

 


 

समय के धरातल पर ,

जो बीज बोये जाते है ,

भविष्य में फिर वही ,

पेड़ बनकर समय की ,

छाती में उग आते है ,

बीज क्या बोया गया था ,

इसी बात पर पेड़ निर्भर है ,

फलदार होगा या कँटीला ,

ये बीज पर निर्भर है ,

समय अपने पास किसी का ,

कुछ बकाया नहीं रखता ,

वो देर -सवेर सब वापस कर देता है ,

वापस किसको ,कब करना है ,

ये समय का अपना निर्णय होता है ,

बीज को पनपने और पेड़ बनने में ,

समय भी तो अपना समय देता है,

और इस नाते इतना हक़ तो ,

समय का भी बनता है।

Monday, August 5, 2024

शांति

 


 इंसान बमुश्किल शांति से रह सकता है ,

उसे शांति हजम नहीं होती ,

वो खुद को उलझा के रखना चाहता है ,

कभी युद्ध में , कभी विवादों में ,

कभी बेफिजूल बातों में ,

फिर भी वह शांति से जीना चाहता है ,

अपने स्वभाव के विपरीत ,

मगर जानते है कुछ लोग ,

उसके अंदर का यह सच ,

वो उठाते है इसका फायदा ,

अपने स्वार्थो के लिए ,

उलझाकर रखना चाहते है सबको ,

ताकि वो साबित कर सके खुद को ,

सबसे बड़ा हितैषी इंसानो का ,

और भोग सके वो तमाम सुख ,

जो पैदा हुए है शांति की राख पर। 

Thursday, July 18, 2024

तृष्णा

 

किसी ने पूछा ," क्या उपलब्धियाँ पायी ?"

मैंने भी जम कर सुना दी उपलब्धियाँ ,

यहाँ तीर मारा , वो सफलता पायी ,

घर जोड़ लिया और जोड़ लिया चार पहिया सवारी ,

थोड़ा बहुत बैंक बैलेंस भी बना लिया ,

और क्या चाहिये भाई ?

 

मुस्कराते हुए उसने कहा ,

" ये सब तो बढ़िया है दोस्त ,

ये तो सब करते है ,

तूने अतिरिक्त क्या किया ?

उसका बखान कर भाई ,

सच -सच बता , क्या तू ज़िन्दगी से खुश है भाई ?"

 

अचानक से दिमाग सुन्न ,

दिल परेशान हो गया ,

ये तो मैं भूल ही गया था ,

इस चक्कर में आधी उम्र खप गयी भाई ,

यकीनन ये सब निहायत जरुरी है ,

मगर इस सबका मजा लेने के लिये ,

वक्त कहाँ है तेरे पास भाई ,

 

जो हासिल किया , उसका लुफ्त लिया कहाँ ,

रोज़ फिर नई ख्वाईश के लिये दौड़ रहा ,

इकठ्ठा कर लेगा तू इक दिन बहुत कुछ ,

दौड़ता रहा यूँ ही तू हरदम ,

तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी,

धरा रहेगा सब कुछ ,

दौड़ कभी पूर्ण न होगी।

Wednesday, June 26, 2024

पड़ाव

 


 अक्सर एक उम्र के पड़ाव पर ,

बच्चों को लगने लगता है ,

उनके माता -पिता ने ,

उनके लिये किया ही क्या है ?

फिर एक पड़ाव उन्हें ,

बार -बार  याद दिलाता है ,

जब उनके बच्चे हो जाते है ,

याद आता है अक्सर फिर ,

उनके माता -पिता ने बहुत त्याग किया है।

 

मगर इन दो पड़ावों के,

बीच का फ़ासला ,

कई बार बहुत लंबा हो जाता है ,

जीवन की आपाधापी में ,

वक्त निकलता जाता है ,

एक टीस सी फिर दिल को कचोटती है ,

अक्सर "धन्यवाद " कहने से पहले ,

माता -पिता का समय गुजर जाता है।

Sunday, May 5, 2024

आठ बीस की मेट्रो

 

एस्कलेटर में भी भाग रहा था ,

घडी पर आठ अठारह दिख रहा था ,

अगर छूट गयी तो अगली पांच मिनट बाद आयेगी ,

अटेंडेंस में आज लेट मार्क लग जायेगी।

 

हाँफता हाँफता प्लेटफॉर्म पर पहुँचा ,

लम्बी लाइन लगी पड़ी थी ,

जेब से रुमाल निकाल पसीना पोछा ,

मोबाइल जेब में रख , घुसने की जल्दी पड़ी थी।

 

ट्रैन आयी , रुकी , बाहर निकलने देने की किसको फुर्सत थी ,

बाहर वालों को अंदर घुसने की जल्दी पड़ी थी ,

ठसाठस डिब्बा भर गया , ऑटोमैटिक दरवाजों की आफत आयी थी ,

किसी का बैग फँस गया था दो पाटो के बीच , कड़ाक की आवाज आयी थी।

 

अंदर साँस लेने की जगह नहीं थी ,

एक पैर में खड़े होने की मजबूरी थी ,

अच्छा बस ये था , अंदर ए सी की ठंडी हवा चल रही थी ,

ध्यान दिया बैग पर , उसी के बैग से शायद वो आवाज आयी थी।

 

फुर्सत कहाँ थी - बैग खोल कर देखने की ,

वैसे भी इतनी जगह कहाँ थी ,

अंतिम स्टेशन उसी का था ,

वहाँ से शटल पकड़नी थी।

 

गंतव्य से पहुंचने से दो स्टेशन पहले सीट मिली ,

सबसे पहले नजर अब बैग पर पड़ी ,

डरते हुए बैग को खोलने की हिम्मत जुटाई ,

लैपटॉप की स्क्रीन टूटी हुई पायी।

 

ओफ्फ , अब ऑफिस में बहाना क्या बनाऊँगा ,

वो आई टी हेड वैसे ही खड़ूस है ,

माउस ख़राब होने पर दो पेज का एक्सप्लनेशन लिखवाता है ,

फिर आधे पैसे एच आर वाला सैलरी से काट लेता है।

 

मेट्रो रुकी , आवाज आयी - यह अंतिम स्टेशन है ,

घडी देखी - आज मेट्रो भी पांच मिनट लेट है ,

अब तो शटल भी चली जायेगी ,

पक्का आज हाफ डे छुट्टी लग जायेगी।

 

बॉस को मैसेज भेजा - थोड़ी देर हो जायेगी ,

बॉस ने उत्तर दिया- आज दस बजे प्रेजेंटेशन है तेरी भाई ,

प्रेजेंटेशन फ़ोन से बॉस को भेजा ,

मैसेज किया , आप ही दे देना , मेरे घर में कुछ इमरजेंसी आयी।

 

फ़ोन में कंप्यूटर रिपेयर की दूकान खोजी ,

वापस उसी ट्रैन में बैठकर अब कुछ सांस आयी ,

घर से निकलते ही एक काली बिल्ली रास्ता काट गयी थी ,

ध्यान आया - ये सारा खेल उसी का है भाई।

Friday, May 3, 2024

आम आदमी

 

वैसे तो आम आदमी ,

आम जैसा ही है ,

आम के आम है ,

और गुठली के भी दाम है ,

लेकिन आम आदमी बहुत परेशान है ,

उलझा हुआ असमंजस्य में है ,

खास होने की तरकीबे खोजता ,

आम होने से खीजता है ,

रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में ऐसा उलझा है ,

सुबह का जोश शाम तक औंधे मुँह गिरता है ,

नैतिकता , सच्चाई , ईमानदारी -सब पाठ रटता ,

कुछ अतिरिक्त के लिये हरदम सोचता है ,

करना बहुत कुछ चाहता है , जुझारू है ,

निम्न और उच्च के बीच पिसा हुआ नजर आता है ,

इज्ज़त बहुत प्यारी है , यही शायद इक बपौती है ,

आम आदमी का खुद से ख़ुदी का संघर्ष है ,

हर कोई उसे बरगलाता है ,

इक अदद नौकरी उसका सहारा ,

घर और ऑफिस सँभालने में जीवन गुजर जाता है ,

एक टीस  उसे रोज सालते रहती है ,

जब कोई ताना मारे -"ज़िन्दगी में किया क्या है ?"

Monday, April 8, 2024

चुनावी साँप -सीढ़ी

 


खींचो ,खीचों ,

ढूँढो -ढूँढो ,

ग्राफ बढ़ रहा उसका ,

कुछ पुराना मसाला ढूँढो ,

मढ़ो - मढ़ो ,

कुछ तो लाँछन मढ़ो ,

चुनावी साँप -सीढ़ी है ,

टाँग खींचो ,

सरपट घसीटो ,

मुद्दे लाओ ,

नीचा दिखाओ ,

जनता के मुद्दे नहीं ,

व्यक्तिगत आरोप लगाओ ,

चुनाव साँप सीढ़ी का खेल है ,

साम -दंड -भेद सब अपनाओ। 

 

बर्गलाओ जनता को ,

ध्यान भटकाओ ,

जनता कही जाग न जाये ,

हिसाब न पूछ ले ,

पक्ष वालों ने क्या किया ,

विपक्ष क्यों सोया रहा ,

अनर्गल प्रलाप करो ,

जनता भोली है ,

थोड़ा टेसू बहाओ ,

प्रलोभन दो ,

मुफ्त की घोषणा करो ,

जीतने के लिए ,

सब तिकड़म करो ,

साँप -सीढ़ी का खेल है ,

खेलते रहो , खिलाते रहो। 

 

नैतिकता जनता के लिए है ,

तुम अपना विकल्प खुले रखो ,

जहाँ को देखो रुख हवा का ,

उसी और बह चलो ,

राजनीति को परिवार में घुसाओ ,

अपना परिवार को आगे बढ़ाओ ,

जनता के घर -घर घुसकर ,

भाई -भाई में सर-फुटव्वल कराओ,

बिकने को तैयार बैठा वोटर ,

नोटों की गड्डियां सरकाओ,

साँप -सीढ़ी का खेल है चुनाव ,

जनता पासा है , उछालते रहो।