आधे से अधिक पहाड़ ,
पहले ही मैदानों में पहुँच चुका है ,
जो आधा बचा था गाँवों में ,
उसमे भी तीन चौथाई अब ,
सड़क किनारे बस चुका है ,
बचा एक चौथाई त्रस्त है ,
बन्दर , लंगूरो , सूअरों के आतंक से ,
गाँव के जीर्ण घरो के आँगन में ,
सिसूण जम चुका है ,
और जंगलों में चीड़ सिर उठा रहा है ,
जंगलो के रास्ते गुम हो चुके है ,
इन सबमे जंगल में ,
फिर से आ चुके है बाघ,
गाँव अब गाँव नहीं रह गए ,
सड़क दूर गाँव अब सब ,
फिर से जंगल होने के कगार पर है।