Tuesday, April 8, 2025

बहस

 

बहुत बहस होती है ,

पुराना ज़माना अच्छा था ,

या नया जमाना अच्छा है ,

जो है , वो सामने है ,

जो सामने है ,

उसमे हम सबका ,

बराबर का योगदान है ,

अगर योगदान है ,

तो चाहे अच्छा है ,

या बुरा ,

हम सब इसके भागीदार है ,

और भागीदारी में ,

जो मिलेगा ,

उसे स्वीकार करना ,

जिम्मेदारी है ,

जिम्मेदारी से ,

अब हर कोई बचना चाहता है ,

बस मुँह फाड़ कह देना है ,

वो जमाना अच्छा था ,

और ये जमाना बुरा है,

जो अब सामने है ,

जैसा है , वही अच्छा है,

जम सकते है तो जमाओ ,

नहीं तो चुपचाप ,

नदी के गंगलोड़ की तरह ,

किनारे लगो ,

और पानी को सपाट ,

बहने दो,

जो बदलेगा , टिकेगा ,

परिवर्तन नियम है संसार का ,

समझदारी यही , तकाजा यही ,

इसके साथ जल्दी हो लो,

गंगलोड़ बनने से कोई ,

फायदा नहीं। 

 

 

 

गंगलोड़ : नदी के द्वारा किनारा किया गया पत्थर 

Tuesday, April 1, 2025

मकड़जाल

 

धीरे -धीरे हमारे चारों तरफ ,

इक मकड़जाल आकार ले रहा है ,

शनैः शनैः हम फँसते जा रहे है ,

और हमें मज़ा आ रहा है।

 

धीरे -धीरे पकड़ मजबूत हो रही है ,

जाल और कसा जा रहा है ,

आभाषी दुनिया का इक आवरण ,

जाल के ऊपर फैलाया जा रहा है।

 

छदम वातावरण असल पर हावी है ,

नये आख्यानों से जाल बुना जा रहा है ,

पँख उलझने लगे है महीन तारो से अब ,

आभासी क़ैदख़ाना तैयार हो रहा है।

Sunday, March 30, 2025

सैलरी



सैलरी तुम चाँद जैसी हो , 

पूर्णिमा पर आती हो , 

अमावस पर ख़त्म हो जाती हो , 

मगर अमावस से फिर , 

पूर्णिमा आने तक , 

वो इन्तजार हद तक गुजर जाता है, 

साँसे अटकी , जेब खाली , 

शरीर  हलकान रहता है।  

Tuesday, March 18, 2025

यायावर

 

सुनो यायावर ,

कहाँ तक जाना है ?

और क्या पाना है ?

पता नहीं ,

हाँ ,लेकिन सब कहते है ,

चलते जाना है। 

 

अच्छा,

अभी तक जितना चले हो ,

उसमे से कुछ याद हैं ,

हाँ, धुँधला सा ही है ,

भागते भागते कहाँ कुछ दिखता ,

और याद रहता है। 

 

बताओ ,

किस चीज की तलाश है ,

बहुत कुछ ,

उस बहुत कुछ में ,

क्या -क्या शामिल है ,

पैसा , रुतबा , ईज्जत ,

कामयाबी , प्रसिद्धि ,

प्यार , मोहब्बत ,

सब कुछ। 

 

अभी तक कितना पाया ,

पाने से अधिक तो खोया है ,

झोले में जितना भरता है ,

उससे ज्यादा तो गिरता है ,

सोचा झोली भर जायेगी ,

सुकून मिल जायेगा ,

शांति से फिर सफर चलेगा ,

मगर उल्टा हो रहा है ,

भागदौड़ में बस ,

सफर चल रहा है ,

 

तो सुनो यायावर ,

कोई मंत्र तो नहीं मेरे पास ,

मगर एक तंत्र है ,

क्षण -क्षण का लुफ्त उठाओ ,

सफर में थोड़ा रुको ,

एहसास करो ,

जो है, उसका मजा लो ,

चलना तो है ही ,

हर मील पार करने पर ,

ठहरो , रुको ,

और जश्न मनाओ। 

Thursday, March 13, 2025

मकसद

 सारी चिंताएँ , 

कुछ खोने का डर , 

कुछ पाने की बेचैनी है।  


सारा संघर्ष , 

कुछ पाने का , 

कुछ और पाने का हैं।  


सारा दुःख , 

अपना नहीं है , 

दूसरों के सुःख का भी है।  


सारी अशांति , 

बाहर ही नहीं है , 

मन के भीतर भी है।  


सारी असफलताएँ , 

खुद की वजह से ही नहीं है , 

किसी के साथ नहीं देने से भी है।  


सारी सफलताएं , 

अकेले की नहीं है , 

बहुतों से साथ से भी है।  


सारी खुशियाँ , 

हमारी वजह से ही नहीं है , 

समय का साथ भी जरुरी है।  


हमारा जीवन , 

सिर्फ हमारा नहीं है , 

किसी न किसी मकसद का है।  


हमारा मकसद , 

हमने नहीं चुना है , 

उसने चुनकर भेजा है।  

Saturday, March 1, 2025

प्रवाही जीवन

 

सरल , सहज और प्रवाही जीवन ,

कठिन ,उलझा और रुका हुआ मन ,

इच्छाएँ अनेक  , साधन सीमित ,

जग बौराया ,  चिंताएँ अनंत।

 

ऊबड़खाबड़ रास्ते , दौड़ अंधाधुंध ,

साँसो की नाजुक डोर पर टिका नन्हा तन ,

किस्मत और कर्मों की जोर आजमाइश ,

कुछ पल सुकून को तरसता जीवन।

 

उपाय क्या है जिससे आसान बने जीवन ,

कर्म किये जा , न कर फल की चिंता ,

भरोसा रख , उम्मीद जगा , कम कर ईच्छा ,

वक्त को इज्ज़त बख्श , हर हाल मुस्करा।

 

स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है , नसीब जगा ,

धीरे -धीरे ही सही , मंजिल की तरफ कदम बढ़ा ,

बहुत उलझनों में खुद को न उलझा ,

एक राह पकड़ बस , उसी पर चलते जा।

Thursday, February 27, 2025

गंगा जी

 



 

गंगा तट पर बैठ समझ रहा जीवन सार ,

नन्ही धार बन नदिया , पहुंचे सागर द्वार ,

बहने के सफ़र में करती सबका कल्याण ,

"गंगा " से "गंगा जी " बनने का यही विस्तार। 

 

निकली छल-छल, कल-कल हिमालय से ,

करती पुनीत पावन पहुँचती हरिद्वार ,

गति मंद स्थिर बहकर कानपूर से ,

मिलती यमुना से प्रयागराज त्रिवेणी घाट। 

 

2525 किलोमीटर का सफर ,

न जाने कितने गाँव , कितने शहर ,

सदियों से बह रही है "गंगा" ,

इतिहास की इक अमूल्य धरोहर। 

 

सबको मिलाती , अपने में घुलाती ,

बह रहा अविरल प्रवाह निरंतर,

जल ही जीवन , जल ही अमृत  ,

"माँ गंगे " बहती रहो युग पर्यन्त।

Thursday, February 20, 2025

आपाधापी

 

जीवन की आपाधापी में ,

सब कुछ जैसे छूट रहा है ,

ज्यूँ - ज्यूँ आगे बढ़ना है ,

त्यूँ - त्यूँ कुछ छूट जाना है।

 

रोज़ नई मशक्कत जीवन की ,

कुछ पाना कुछ खोना है ,

अधरों में मुस्कान लिये मुसाफिर ,

रोज थोड़ा हँसना , थोड़ा रोना हैं।

 

वक्त कहाँ थोड़ा सुकून के लिये ,

ये भी करना है , वो भी भरना है ,

कस्तूरी मृग सा , मृगतृष्णा सी  ,

कभी यहाँ , कभी वहाँ भटकना है।

 

दौड़ लगी हैं बड़ी भयंकर,

सब कुछ समेट लेना है ,

भोग्य को भोग सके तक,

खुद भोग हो जाना है।

Monday, February 3, 2025

जीवन मूल्य

 

गुजर रहे है हम उस दौर से ,

सब कुछ धीरे -धीरे बदल रहा ,

नए मानक स्थापित हो रहे है,

पीछे बहुत कुछ छूट रहा।

 

पीछे जो छूट रहा है ,

उसमे कुछ सँभालने लायक भी है ,

मगर दौड़ इतनी भयंकर ,

सँभालने का वक्त किसको मिल रहा।

 

परिवार दरक रहा ,विश्वास हिल रहा ,

धैर्य हिचकोलों में फँसा हुआ ,

आस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह है,

ये कौन दिशा और दशा तय कर रहा।

 

प्रेम -स्वार्थ की बलि चढ़ रहा ,

अहं सिर चढ़ बोल रहा ,

बेवजह चिंताएं शरीर नाश कर रही ,

जो है हाथ में , वो भी खो रहा।

 

बेशक नए मूल्य गढ़ने चाहिये ,

परिवर्तन समय की दरकार भी है ,

मगर जिन मूल्यों पर खड़ा है जीवन , 

उनको सहेजना भी जरुरी है।